Rajani katare

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बंधन जन्मों का भाग -- 14



               "बंधन जन्मों का" भाग-14

पिछला भाग:--
आज इतना समय हो गया...बाबू जी सोकर 
नहीं उठे... ऐसा तो कभी होता नहीं....
बच्चू देखो तो जरा!! 
बच्चू बोला- बाबू जी सो रहे... अब न उठ 
पाएंगे... ऐ भगवान कैसी विधना रच दी तूने....
अब आगे:--
कैसा सूना सूना लग रहा है... बाबू जी को गये
सवा महिना हो गया.....
अब फिर वही स्कूल और घर... बच्चे बड़े हो गये सो अपने अपने में लगे रहते.....
बच्चू भी अपने बिजनेस में रमा रहता.....
अभी कुछ समय से विमला अपने आपको बहुत अकेला महसूस करने लगी थी.....

रह रह कर बिरजू की याद सताने लगी थी....
वो सोचती ऐसा क्या हुआ होगा...आज तक 
पता नहीं लग पाया... अंतिम दर्शन तक करने 
नहीं मिले....कैसा भाग्य लिखा विधाता ने....
बहुत रात गये.... पता नहीं कब आँख लगी 
होगी.......

दूसरे दिन प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर 
विमला आज सुबह से ही सफाई अभियान में 
जुट गयी... बच्चे सब अपने अपने में लगे किसी 
को कालेज जाना... किसी को स्कूल तो किसी को अपने काम से जाना.......
मम्मी आज नाश्ता नहीं मिलेगा क्या...?
आज आप सुबह से सफाई में लगी हो!!
क्या बात है...?
बच्चू एक काम करो!! आज बाहर से नाश्ता ले
आओ... मुझे थोड़ा समय लगेगा....
खाना तो बना कर जाऊंगी स्कूल....

रीता तू आज देर मत करना कालेज में....
मेरे साथ मेरी सहेली अपने परिवार के साथ 
आएगी... उसका बेटा अच्छी सरकारी नोकरी
में बाहर है.... वो अभी आया हुआ है.....
सो दोनों एक दूसरे को देख लेना.....
रीता-ठीक है माँ जल्दी आ जाऊँगी.....

बच्चू नाश्ता ले आता है बढ़िया गर्मागर्म 
समोसे जलेबी...सब नाश्ता करके चले जाते 
हैं... विमला भी जल्दी जल्दी सब काम करके 
खाना बनाकर... दाल चावल खाकर निकल 
जाती है...शाम को उसके साथ उसकी सहेली अपनी सासू माँ और बेटे के साथ आ जाती हैं...

बच्चे भी सब घर आ गये थे.... बच्चू भी आ 
गया था... उनके नाश्ते के लिए मीठा नमकीन 
सब लेकर आया... सब को बैठाकर विमला झट अंदर गयी... बेटा साड़ी नहीं पहनी तूने.....
साड़ी पहन कर अच्छे से तैयार होकर आजा 
बाहर.... तब तक गुड़िया से नाश्ता भेजता है
बच्चू.... चाय भी चढ़ा दी बच्चू ने.....

अरे आ गयी बिटिया आजा आजा यहाँ बैठो
हमारे पास.... सहेली की सासू माँ- क्या पढ़ी हो बेटा...? सारा काम धाम कर लेती हो!! 
सिलाई बुनाई भी जानती हो क्या...?
जो कुछ पूछा जा रहा सब बताती जाती है रीता,
विमला बोलती है बेटा तुम लोग छत पर चले
जाओ...आपस में जो भी पूछना हो... जो भी 
बात करनी हो ऊपर जाकर कर लो.....

सहेली का बेटा आर्यन कहता है- आंटी हम दोनों बाहर चले जाते हैं... आधा एक घंटे में घूम कर
आ जाएंगे.... विमला ने तो यह सोचा ही नहीं था,
ऐसा कभी देखा सुना भी नहीं....सो एकदम से
सकपका गयी क्या बोलें.....
क्रमशः--

  कहानीकार-रजनी कटारे
       जबलपुर ( म.प्र.)

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